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रक्षक (भाग : 04)

रक्षक भाग : 04

खंड - 02 : UNDEAD युद्ध


लेखक - मनोज कुमार "MJ"
सम्पादक - श्री सूरज शुक्ला



पिछले भाग में आपने पढा की राज को किसी अनजान ग्रह से आये महान योद्धाओं  4J ने अपना रक्षक बताकर अपने ग्रह पर ले जाते हैं।

वहां रक्षक को उसके अतीत और उसके माता पिता के बारे में बताया जाता है, गुरु जीवा उसे अंधेरे के बेटे और उसके पिता के ‘लहू’ बनने तक कि कथा सुनाते हैं, तब राज अंधेरे के बेटे से तुरंत  लड़ने को तैयर हो जाता है, परन्तु नियम के अनुसार युध्द सूर्योदय के पश्चात होता था इस लिए राज  को आराम करने  के लिए भेज दिया जाता है।


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अब पढ़िए आगे…………..

इधर राजमहल में राज को उसके कक्ष में पहुँचा दिया गया था।  न जाने क्यों यहां उसे कुछ अलग ही तरह का अहसास हो रहा था।

वो खुद को इस स्थान से जुड़ा हुआ महसूस कर रहा था, पर गुरु जीवा की सभी बातों पर विश्वास नही कर पा रहा था।

उसे अपने अतीत का कोई पन्ना खोया हुआ सा लग रहा था। उसका क्रोध अब पानी की तरह बह चुका था मस्तिष्क गहन चिंतन में डूब गया था, और वो बस अब आने वाले भविष्य और अपने माता - पिता के बारे में ही सोच रहा था।

उसके पिता पिछले कुछ वर्षों से यहां क्यों नही आये ?... उसके अंदर का क्रोध इतना भयंकर क्यों है? क्या होगा अगर मैंने अपने क्रोधाग्नि में इस ग्रह को दोबारा जला दिया??
इन सबने मुझे रक्षक क्यों चुना?  क्यों सूर्य का ताप मुझे और मेरे पिता को नही जला सका??

आखिर अंधेरे ने  इस ग्रह को अपना निशाना बनाने  के लिए अपने बेटे को ही क्यों भेजा ?

इन सब बातों में कोई न कोई कड़ी जरूर जुड़ी हुई है…।

यही सब सोचते सोचते राज कब गहरी नींद में चला गया कुछ पता ही न चला।
कुछ वक़्त पहले का निष्क्रिय मस्तिष्क अब सक्रिय हो चुका था।

रक्षक का दिमाग अब जाग चुका था, परन्तु अभी भी वो  कई सारे रहस्यों से अनजान था।

वो अपने क्रोध को सामने नही आने देना चाहता था क्योंकि वो इसके दुष्प्रभावों से भलीभांति परिचित था।

वह धीरे धीरे पूर्ण रूप से रक्षक के मस्तिष्क से जुड़ने की कोशिश कर रहा था।पर न जाने क्यों ये संभव नही हो पा  रहा था।

रात का दूसरा पहर बीत चुका था।अंधेरा इस वक़्त अपने चरम पर होता है,  राज गहरी नींद में सोया हुआ था।

“तुम एक निमित्तमात्र हो, एक कुंजी हो इस महायुद्ध के, इस ब्रह्मांड के विनाश के कारण बनोगे तुम” - कोई आवाज जैसे उसके मस्तिष्क गूंज रही थी।

“ तुम स्वयं नही जानते  कि तुम क्या हो?
तुम्हे नही पता तुम क्या करने वाले हो?  स्वयं से अनजान हो तुम, तुम्हे किसी पर भरोसा नही करना चाहिए, तुम सत्य के प्रतीक बनना चाहते हो, खुद को कैसे झुठलाओगे तुम…??”

“क… कौन हो तुम..?” राज हड़बड़ाकर अपने बिस्तर से उठ बैठा और अपने आस पास नजर दौड़ाते हुए  पूछा।

अपने आस पास किसी को न पाकर वह फिर से तिलमिला उठा, उसे गुरु जीवा की सभी बातें रह रह कर याद आने लगी।

राज अब फिर  क्रोध  में जलने लगा था, वह युद्ध के लिए इतना आतुर हो चुका था कि अभी इसी क्षण युद्ध के मैदान में उतर जाना चाहता था ।

परन्तु इस ग्रह के नियमानुसार युद्ध सूर्योदय के पश्चात ही प्रारंभ होना था। इसलिए राज बेसब्री से सूर्योदय का  इंतज़ार कर रहा था।

उसे कुछ समय पहले की याद आने लगी  जब वह  धरती पर था और  ऐसे ही समय मे रीढ़ की हड्डियों में तेज दर्द होता था और कोई आवाज उसे बुलाती थी, पर ये आवाज उस आवाज से अलग थी, और अब राज को अपनी रीढ़ की हड्डी में दर्द भी महसूस नही हो रहा था।

राज उठकर अपने कक्ष में थोड़ी चहल कदमी करने लगा।

सुबह होते ही राज स्वयं से उठकर राजमहल गया और महाराज वैनाडा और गुरु जीवा को प्रणाम किया। उन सबने भी खड़े होकर राज का अभिवादन किया।

कुछ क्षण रुक कर राज  ने कहा - “ गुरुदेव हम एक महान युध्द आरम्भ कर चुके हैं, जिसमे आज आपके इस शिष्य का प्रवेश होना है। विजयतिलक लगाकर आशीर्वाद दीजिये गुरुदेव!”

गुरु जीवा - “विजयी भवः पुत्र!”

“परन्तु नायक ! तुम्हारे मुख की मलिन रेखा बता रही है कि तुम्हारा प्रयोजन कुछ और भी  है।” वैनाडा ने राज को गौर से देखते हुए कहा।
“कहो क्या अब भी कोई शंका शेष है?”

“महाराज कोई शंका नही है, परन्तु बस एक सवाल है मेरी माँ आखिर गयी कहाँ? और मेरे पिता परमज्ञान और परमशक्ति धारक होते हुए भी उनको  ढूंढ क्यों नही पाए? मेरे पिता आखिर कहा चले गए  …??” - राज ने अपने मन मे घूम रहे सवाल को सबके सामने रख दिया।

अर्थ -“ क्षमा चाहता हूँ रक्षक! इन दोनों सवालो का हमारे पास भी कोई जवाब  नही है, होता तो हम तुमसे कभी नही छुपाते। अब युद्ध का समय हो गया है और आज तुम अकेले जाने वाले हो, याद है ना!”

“अर्थ सत्य कह रहा है वत्स! इन सवालों का जवाब हम स्वयं नही ढूंढ पाएं हैं,
परन्तु तुम्हे अनडीड और उसकी सेना से अकेले लड़ने नही जाना चाहिए, हमारी सेना की एक टुकड़ी अर्थ के नेतृत्व में तुम्हारे साथ जाएगी।” - गुरु जीवा ने कहा।

“मुझे कोई ऐतराज नही है गुरुदेव!” - राज हाथ जोड़कर सिर झुकाया और पीछे मुड़कर चला गया।

“ युद्ध सदैव कुरबानियां मांगता है और एक योद्धा अपने वतन पर स्वयं को शहीद कर गौरव को प्राप्त होता है। हम सब सामान्य प्राणी हैं, परन्तु युद्ध कौशल हमें सबसे अलग बनाता है। अपने मिट्टी के लिए खुद को कुरबान कर देने की चाहत हमे सबसे ताकतवर बनाती है, हम लड़ेंगे आखिरी दम तक।
वादा करो जब तक हममें रक्त की एक बूंद भी शेष है तब तक जेन्डोर पर अंधेरे का राज कायम नही होने होगा।” - अपनी सेना के सामने एक ऊंची जगह खड़े होकर अर्थ तेज और प्रभावशाली आवाज में उनका मनोबल बढ़ा रहा था।

“इस युध्द में हम सबने किसी न किसी अपने को खोया है, हमें कसम हैं उस एक एक शहीद की, हम उनकी कुर्बानी व्यर्थ नही जाने देंगे। और हमे अब अपने उम्मीद की किरण यानी हमारा रक्षक मिल चुका है।  रक्षक वापस आ चुका है! आज के युध्द में हम सब अपने रक्षक के साथ लड़ेंगे ”

तभी रक्षक मुख्य द्वार से बाहर निकलता हुआ दिखा।

7 फुट लंबे बलिष्ठ शरीर पर काली, लाल और हल्की नीली पोशाक, दोनो हाथ मे ‘सॉलिड बी’ की सोर्ड और विशाल सीने पर एक विशेष हथियार।

रक्षक को देखते ही सेना में नया उल्लास आ गया। सब जोश से भर गए। आज लहू न सही, उसका बेटा रक्षक उन सबके बीच था, आज के युद्ध का निर्णय पिछले दिनों से अलग हो सकता है।

दूसरी तरफ विशाल राक्षसों की सेना, undead फोर्स और स्वयं undead बहुत ही खुश थे।
हर रोज की विजय प्राप्ति ने उनके जोश को दुगुना कर दिया था, परन्तु अब अंधेरे के बेटे का आदेश था कि ये युद्ध शीघ्र खत्म हो और उसे जेन्डोर पर अपना पूर्ण अधिकार चाहिए।

कुछ समय बाद वहां सारी सेना कतार में खड़ी हो गयी। उन सबके सामने था undead, जिसके बारे में माना जाता था कि वो अमर है, किसी भी बाहरी हथियार से वो कभी नही मर सकता।
9 फुट ऊंचा, दोनो हाथ मे तिरछा फरसा, बदन पर काले धातु का लिबास, बड़ा चेहरा और खूंखार चेहरा ,सुर्ख लाल आंखे और बड़े बड़े केश किसी भयावह सपने की तरह लगते थे। उसका सामान्य रूप सभी राक्षसों से अलग था ।परन्तु विशाल रूप में वो 30 फुट ऊंचा, कान के बगल में दो लाल सींगे और इस अवस्था मे वह अनश्वर प्राणी सा बन जाता था जिसके चारों तरफ अग्नि प्रज्वलित होती रहती थी।

परन्तु undead इस बात पे अनजान था कि रक्षक वापस आ गया है।

सारे राक्षस जोर - जोर से चिल्लाते हैं - “अंधेरे की जय हो! महान सेनानायक undead की जय हो.. ।।”

ग्रह पर  एक विशाल युद्धस्थल बन चुका था जो शायद किसी महाद्वीप के बराबर होगा। एक तरफ से राज की सेना तो दूसरे तरफ से undead की अपराजित राक्षस सेना आपस मे भिड़ने वाली थी।  आज सदियों बाद रक्षक और undead फिर आमने सामने आने वाले थे।

समय किसी का मोहताज नही होता। पिछले युद्ध में रक्षक ने undead और उसकी सेना को हरा तो दिया था पर अपने इस महाविशाल ग्रह की तबाही का जिम्मेदार भी वही  था।

आज फिर समयचक्र वही पहुँच चुका था ।आज राज शायद अपने क्रोध से डर रहा था , या फिर वो सबके सामने ऐसा जाहिर कर रहा कि उसे कुछ भी याद नही अब वो सामान्य पृथ्वीवासी बन चुका है।

रणभेरी बजी...

इसी के साथ युद्ध आरम्भ हुआ। रक्षक और अर्थ अपनी सेना में सबसे आगे थे। दूसरी तरफ से undead और deadrons तेजी से दौड़ रहे थे।

ऐसे लग रहा था मानो कोई भूकंप आया गया हो, रक्षक और undead तेज़ी से आपस में भिड़े..

“तू इतने दिन तक कहा छुपा फिरा था चूहे, पिछली बार जीत गया था तू परन्तु इस बार ऐसा बिल्कुल भी नही होगा।” - undead गुर्राकर बोला और साथ ही अपने फरसे से राज पर वार किया।

“बात नही, सिर्फ युद्ध करो अंधेरे के सेवक !”- राज उसके वार को अपनी तलवार से रोकते हुए बोला।

“ क्यो, मौत को सामने देखकर डर लग रहा है क्या?” - undead पुनः उसी भाव मे बोला।

“कब किसकी मौत होगी ये समय तय करेगा अंधेरे के सेवक।” कहते हुए राज ने अपने दाहिने हाथ से उसके ऊपर तीव्र प्रहार किया।

“तुम कदाचित भूल रहे हो नायक! ये सिर्फ नाम है, असली में रक्षक नही हो तुम”- undead उकसाने की कोशिश करता हुआ रक्षक के वार को बचाते हुए उसके बाएं कंधे पर वार किया, जिससे रक्षक झुककर बच गया।

दोनो सेनाओ में भीषण युद्ध हो रहा था। तभी रक्षक की सेना में दो योद्धा और आये जो अपने सर को धूसर रंग के कपड़े से छुपाये हुए थे।

दोनो बहुत तेज़ी से राक्षसों का संहार करने लगे…

पहला - “मैंने पहले ही कहा था हमे तैयार होने की जरूरत है।”

  “मैंने कभी कभी इसका भान न हुआ इसीलिए पिछले युद्धों में न आ सके, इसी वजह से  देर हुई, पर अब भी हम हारे नही हैं, वो तो अच्छा हुआ जो तुमने रक्षक के आगमन के बारे में बता दिया, वरना हमारा आना व्यर्थ भी हो सकता था।” यह कहते हुए  दूसरे ने अपनी तलवार एक राक्षस के पेट मे आर पार कर दी।

“ ऐसा अब भी हो सकता है, पूरा ध्यान लड़ाई पर लगाओ बातो पर नही।” पहला झुककर एक राक्षस से बचकर उसपर पलटवार करते हुए बोला।

दूसरा - “ उम्मीद करो कि हम जीत जाएं, हारने के बाद पता नही क्या होगा।”

पहला - “ये रक्षक ही तय कर सकता है।”  कहते हुए तेज़ी से  सामने की ओर दौड़ा, उसके दोनों हाथों में नुकीली चमकती तलवार थी, दूसरे ने भी उसका अनुसरण किया अब तक दोनों undead की लगभग आधी सेना समाप्त हो चुके थे।

अचानक इन दो रहस्यमयी मददगारों के आ जाने से रक्षक की सेना का जोश अपने चरम पर पहुंच गया। ये दोनों किसी भी मामले में रक्षक से कम नही लग रहे थे, अब दोनों के हाथों में एक विशेष गन थी, जिसके एक ही वार से निकलने वाली ऊर्जा किरण अपने सामने वाले को जलाकर खाक कर देती थी।

राज भी इन अनजान मददगारों के अचानक आ जाने से हैरान था, अब वो पूरी तरह undead से लड़ने के लिए खुद को स्वतंत्र महसूस कर रहा था।

वही दूसरी तरफ deadrons में खलबली मच चुकी थी, undead कभी  ऐसी मदद की अपेक्षा नही कर सकता था, शायद उसे पता था कि लहू नही आ सकता, परन्तु रक्षक… वो आ गया और उसके साथ ये अनजान मददगार भी, पर वो अंधेरा ही क्या जो उजाले को मिटा न सके…

“तुम्हे क्या लगता है नायक! इन दो लोगों के आ जाने से जीत जाओगे तुम, तुममें हिम्मत होती तो अकेले आते पिछली बार की तरह” - undead ताने मारते हुए बोला, साथ ही एक नुकीले भाले से रक्षक के सीने पर वार किया पर रक्षक पर इसका कोई असर न हुआ।

“अब मैं बच्चा नही रहा अंधेरे के सेवक! मुझे ज्ञात है कि क्या करना उचित है, तुम मुझे मत सिखाओ।” - राज पलटवार करता हुआ बोला।

इसके बचाव में undead अपना फरसा सामने करता है, तेज़ दबाव के कारण फरसा उसके हाथ से छूट गया, इतनी शक्तियों को प्राप्त करने के बाद ऐसा पहली बार हुआ था कि कोई उसके हाथ से उसका हथियार गिरा सका।

राज अपनी तलवार वापस रख उसके ढोढ़ी पर दायें पैर से जोरदार वार करता है, लेकिन undead हिलता तक नही, और बस हल्के से मुस्कुराकर राज के गुस्से की आग में घी डाने का काम करता है।

राज उसपर लगातार हमले करने लगा पर undead टस से मस भी नही हुआ और अपनी तरफ बढ़ते हुए राज के हाथ को पकड़कर जमीन पर पटक देता है।

“उफ्फ्फ…., ये इतना शक्तिशाली कैसे हो सकता है!” - राज अपने मन मे विचार कर रहा था, तभी उसे undead न एक बार फिर जोरदार पटकनी दी।

“अब मैं पहले की तरह कमज़ोर नही रहा, जिसे तुम हरा सको। अब मुझे तुम जैसे कई मिलकर भी नही हरा सकते, आज मुझे मेरी सारी शक्तियां मिल गयी, अब से मैं डार्क पॉवर का मालिक हूँ हा हा हा हा हा…..” undead हँसते हुए चिल्लाकर बोला।

“ये मेरे गुस्से को भड़काना चाहता है।इसका परिणाम चाहे जो भी हो, मेरे हित मे नही होगा, मुझे स्वयं पर संयम रखना होगा। मुझे अपनी श्वेत शक्तियों को जगाना होगा। बी शक्ति पर ध्यान केंद्रित करना होगा।” राज अब भी विचार कर रहा था और स्वयं को undead के हाथों से छुड़ाने का  प्रयास कर रहा था।

“तुम सदियों से ऐसे ही हो रक्षक, सिर्फ नाम के रक्षक हो तुम! तुम कभी इनकी रक्षा नही कर पाओगे हा हा हा हा हा…. , हाँ पर मुझे तुम्हारी जान लेने में बहुत मज़ा आएगा। ” - अट्टाहस करते हुए undead राज के शरीर को हवा में उठाता है, पर इस बार जमीन पर नीचे वो खुद गिरा।

राज जमीन पर खड़ा था। जैसे ही उसने राज को ऊपर उठाया था राज ने उसके गले मे अपना पैर फंसाकर उसे नीचे गिरा दिया था।

“हर बार ऐसा नही होगा अंधेरे के सेवक! बिल्कुल नही होगा। अंधेरा चाहे जितना भी घना हो एक हल्की सी रोशनी भी उसे मिटा सकती है।” - कहते हुए राज  की आंखे श्वेत चमकने लगी।

“लगता है रक्षक ने धैर्य को प्राप्त कर लिया।”- पहले अनजाने मददगार ने दूसरे से कहा।

“नही, ये धैर्य नही सयंम है, अभी उसने सिर्फ संयम और क्रोध को प्राप्त किया है, अभी बहुत कुछ बाकी हैं।” - दूसरे मददगार  ने जवाब दिया।

अब बाजी रक्षक के हाथ में थी।  undead राज के दोनों हाथो में ऊपर हवा में था, जिसे घुमाकर उसने दूर फेंक दिया। 

undead के होंठो से थोड़ा सा स्याह रंग का रक्त स्रवित होने लगा।

पर वो अब भी मुस्कुरा रहा था, कुटिलता पूर्ण मुस्कान…
“ उजाला कितना भी हो रक्षक! अंधेरे से घिरा हुआ होता है.. हा हा हा हा……”

रक्षक ने देखा कि उसके सेना के चारो तरफ़ अंधेरे की सेना खड़ी है, वो चारो तरफ से घिर चुके थे, किसी को समझ नही आ रहा था कि ये कैसे हुआ जबकि उन्होंने लगभग सारे राक्षस सैनिको का वध कर दिया था।

“ हर बार तुम जीतो ये मुझे रास नही आता उजाले के शौहर… तुम्हे तो अंधेरे में ही दफ़नाउँगा मैं, देखो मैं अपनी किसी शक्ति का प्रयोग किये बिना जीत रहा हूँ… हा हा हा हा…. अंधेरे की जय हो…”

“तुम्हे ऐसा क्यों लगता है कि मैं इनको देखकर घबरा जाऊंगा”, कहते हुए राज undead के पेट पर अपने सिर से जोरदार वार करता है, जिससे undead जमीन पर गिर जाता है।

अब राज के दोनों हाथों में 'सॉलिड बी' की बनी हुई तलवार चमक रही थी, वो तेज़ी से उस ओर दौड़ा जहां उसकी सेना अंधेरे के सैनिकों से भिड़कर अपना दम तोड़ रही थी।

करीब 2 किलोमीटर लंबी छलांग लगाई उसने और तलवारें स्याह रक्त में डूब चुकी थी, अब उसकी आँखों मे श्वेत चमक लाल होती जा रही थी। वो तेज़ी से मारकाट करने में लगा हुआ था।

वहीं  दूसरे छोर पर अर्थ के नेतृत्व में सैनिको ने लगभग सारे डेडड्रोन्स के नामोनिशान मिटा ही चुके थे कि अचानक वहां उनकी बढ़ती संख्या ने उन्हें हैरान कर दिया। वे सब भी चारो तरफ से घिर चुके थे। रक्षक से थोड़ी ही दूर पर वो दोनों रहस्यमयी मददगार अपने सारे प्रतिद्वंदियों को पछाड़ चुके थे कि अचानक से वे भी अंधेरे के सैनिकों से घिर गए….

वहां काले लिबास में कोई प्रवेश कर चुका था, जिसका सर से पांव तक लिबास काला ही था...।

“मदद के लिए धन्यवाद महान तमसा!”- undead सिर झुकाकर बोला, परन्तु फिलहाल इसकी जरूरत नही थी।"

“चुप!..” रौबीली आवाज में फटकार लगी, तुम्हे पता हैं न आज के दिन ही मेरे भाई को इस ग्रह पर राज्य चाहिए। हमारा ये प्रयास असफल नही होना चाहिए।

“जी….”

“अंधेरे की जय हो!  ऐसा ही होगा महान तमसा ”   undead हाथ जोड़कर सिर झुकाते हुए कहा ।

क्रमशः……..


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3 Comments

Hayati ansari

29-Nov-2021 09:55 AM

Good

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Niraj Pandey

09-Oct-2021 12:14 AM

बहुत ही शानदार👌👌

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Seema Priyadarshini sahay

05-Oct-2021 05:09 PM

बहुत सुंदर

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